Monday, June 14, 2021

रावण के रोचक तथ्य - Facts About Ravan



दशहरे पर रावण का प्रतीकात्मक वध देश भर में होता है। लेकिन एक जगह ऐसी भी है जहां रावण की पूजा होती है। रावण से जुड़े कई तथ्य ऐसे हैं, जो आपको आश्चर्यचकित कर सकते हैं।




मुख्य बातें


रावण ब्रह्माजी का पड़पौत्र था, उसके दादा जी ब्रह्मा के पुत्र थे


रावण किसी स्त्री को छूता तो उसका विनाश हो सकता था


रावण महाज्ञानी और महान संगीतज्ञ भी था


रावण को रावण नाम शंकर भगवान ने दिया


रावण ने राम के लिए एक यज्ञ का प्रदर्शन किया था और जब वह मर रहा था तो उसने लक्ष्मण को बहुमूल्य ज्ञान प्रदान किया था


पुष्पक विमान एक ऐसा विमान था जिसे बहुत कम लोग ही नियंत्रित कर पाते थे और रावण भी उसमें से एक था


रावण आधा राक्षस पर आधा ब्राह्मण था


रावण को ज्योतिष विद्या का ज्ञान था



कुबेर रावण का भाई था


वह अपने भाई से बहुत प्रेम करता था कुंभकरण को श्राप मिलने पर रावण ने कठोर तपस्या किया और उसके श्राप को कम करवाया


वह अपने पत्नी से भी बहुत प्यार करता था एक बार वह बीमार हो गई थी तो उसके लिए वह देवताओं से भी लड़ने को तैयार हो गया था


आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि शिव तांडव स्त्रोत की रचना रावण के द्वारा ही की गई है



रावण शंकर जी का सबसे बड़ा भक्त था रावण के सिंहासन के नीचे कई दिनों तक शनि देव लेटे थे जिसे बाद में हनुमान जी ने मुक्त करवाया


रावण ने लक्ष्मण को कहा कि मैं युद्ध हारा क्योंकि मेरा साथ मेरे भाई ने नहीं दिया




लंकाधिपति रावण को दशानन भी कहते है। रावण लंका का तमिल राजा था।

वाल्मीकि रामायण महाकाव्य में रावण का सबसे प्रमाणिक इतिहास मिलता है।


रामायण के अलग-अलग भागों से संग्रहित रावण से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारें में आइए बताएं।



1. रावण ब्रह्माजी का पड़पौत्र था। 
रावण के दादाजी का अनाम प्रजापति पुलत्स्य था और वह ब्रह्मा जी के पुत्र थे। ब्रह्मा जी के 10 पुत्र थेइस आधार पर रावण ब्रह्मा जी का पडपौत्र था जबकि उसके पिता और दादा दोनों ही धर्म की राह पर ही चले थे।

2. ‘रावण संहिता’ का रचयिता रावण था
ज्योतिष शास्त्र में रावण संहिता को बहुत ही उत्तम और महत्वपूर्ण पुस्तक माना गया है। इस पुस्तक का रचयिता खुद रावण था। वह विख्यात महापंडित और ज्ञानी था, इसलिए जब रावण मृत्यु शय्या पर था, तब श्रीराम ने लक्ष्मण जी को उसके पास बैठने को कहा था ताकि वह मरने से पहले लक्ष्मण को अपनी ज्ञान के पिटारे से कुछ दे सके।

3. रावण ने किया था भगवान राम के लिए यज्ञ। 
रावण ने एक बार भगवान राम के लिए यज्ञ किया था। हालांकि ये यज्ञ वह भगवान राम की भलाई के लिए नहीं बल्कि अपने लिए किया था। जब भगवान लंका तक पहुचने के लिए पुल बना रहे थे, तब शिवजी का आशीर्वाद पाने से पहले उसको भगवान श्रीराम जी का आराधना करनी पड़ी थी। रावण तीनों लोकों का स्वामी था। उसने इंद्र तक का सिहांसन छीन लिया था।



4. रावण को वीणा बजाने में थी महारत। 
रावण एक संगीतज्ञ भी था। उसे वीणा बजाने में महारत हासिल थी। रावण को संगीत का बहुत शौक था। पौराणिक कथा बताती है कि रावण इतनी मधुर वीणा बजाता था कि देवता भी उसका संगीत सुनने के लिए धरती पर आ जाते थे।

5. शनिदेव को रावण ने बनाया था बंधक
रावण बेहद शक्तिशाली था और उसने नवग्रहों को अपने अधिकार में ले लिया था। जब मेघनाथ का जन्म हुआ था, तब रावण ने ग्रहों को 11वे स्थान पर रहने को कहा था, ताकि उसे अमरता मिल सके लेकिन शनिदेव ने ऐसा करने से मना कर दिया और 12वे स्थान पर विराजमान हो गये। मेघनाथ के जन्म के समय शनि की ये कृत्य रावण को नागवार गुजरी और उसे शनिदेव पर आक्रमण कर उन्हें बंदी बना लिया था। रावण ये जनता था कि उसकी मौत विष्णु के अवतार के हाथों होगी और ये उसके मोक्ष का कारक होगा।

6. रावण के दस सिरों के पीछे है पौराणिक कथा
रावण के 10 सिर के बारे में दो मत हैं। पहले मत के अनुसार रावण के 10 सिर नहीं थे। उसके गले में पड़ी 9 मोतियों की माला से एक भ्रम पैदा होता था कि उसके 10 सिर है। ये माला उसे, उसकी मां ने दिया था। दूसरे मतानुसार जब रावण शिवजी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप कर रहा था, तब रावण ने खुद अपने सिर को धड से अलग कर दिया था और शिवजी उसकी ये भक्ति देख इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने उसके हर हर टुकड़े से एक सिर बना दिया था।



7. शिवजी ने दिया रावण को उसका नाम
शिवजी ने ही लंकाधिपति को रावण नाम दिया था। रावण शिवजी को कैलाश से लंका ले जाना चाहता था, लेकिन शिवजी जब राजी नहीं हुए तो वह कैलाश पर्वत को ही उठाने लगा। तब शिवजी ने अपना एक पैर कैलाश पर्वत पर रख दिया, जिससे रावण की अंगुली दब गई। दर्द के मारे रावण कराह उठा और शिवजी को से क्षमा मांगने लगा और इसी दौरान उसने शिव तांडव की रचना की। शिवजी को ये बहुत अजीब लगा कि दर्द में होते हुए भी उसने शिव तांडव गा रहा है, तो उन्होंने तब उसे उसका नाम रावण रखा। इसका अर्थ था, जो तेज आवाज में दहाड़ता हो |

8. एक यज्ञ जिससे हो सकती थी रावण की जीत
रावण जब युद्ध में हार रहा था तब उसने यज्ञ करने का निश्चय किया। इस यज्ञ से तबाही और तूफान आ सकता था, लेकिन इस यज्ञ को पूरा करने के लिए उसे पूरे यज्ञ के दौरान एक जगह बैठना जरूरी था। जब ये बात भगवान राम को पता चली तो उन्होंने बाली पुत्र अंगद को रावण का यज्ञ में बाधा डालने के लिए भेजा, लेकिन तमाम प्रयास के बाद भी अंगद यज्ञ में बाधा डालने में सफल नहीं हुए तब उन्हें मंदोदरी का ध्यान आया। अंगद ने मंदोदरी को घसीटना शुरू किया कि यह देख रावण ये देखकर अपना स्थान छोड़ देगा, लेकिन वो नहीं हिला। तब मन्दोदरी रावण के सामने चिल्लाई और उसका तिरस्कार किया और राम जी का उदाहरण देते हुए कहा की “एक राम हैं, जिन्होंने अपनी पत्नी के लिए युद्ध किया और दूसरी तरह आप, जो अपनी पत्नी को बचाने के लिए अपनी जगह से नही हिल सकते।” यह सुनकर अंत में रावण उस यज्ञ को पूरा किए बिना ही वहां से उठ गया और यज्ञ असफल हो गया।



9. पूर्वजन्म में रावण-कुंभकर्ण थे भगवान विष्णु के द्वारपाल
रावण और कुंभकर्ण पूर्वजन्म में भगवान विष्णु भगवान के द्वारपाल जय और विजय थे जिनको एक ऋषि से मिले श्राप के कारण राक्षस कुल में जन्म लेना पड़ा था और अपने ही आराध्य से उनको लड़ना पड़ा।

10. एक श्राप की वजह से नही कर सका रावण माता सीता को स्पर्श
ऐसा कहा जाता है कि रावण महिलाओं के प्रति बहुत जल्द आसक्त होता था। एक बार जब वह नालाकुरा की पत्नी को अपने वश में करने की कोशिश कर रह था तब उन्होंने उसे श्राप दिया था कि वह जीवन किसी भी स्त्री को उसकी इच्छा के बिना स्पर्श नहीं कर सकेगा और ऐसा करने का प्रयास किया, तो उसका विनाश हो जाएगा। यही कारण है कि वह देवी सीता को छू नहीं सका था।

11. रावण था एक आदर्श पति और आदर्श भ्राता
रावण एक आदर्श भाई और पति था। वह अपनी बहन का अपमान नहीं सह सका था और वहीं वह अपनी पत्नी का भी बहुत सम्मान करता था। अपनी पत्नी को बचाने के लिए उस यज्ञ से उठ गया, जिससे वो राम जी की सेना को तबाह कर सकता था।

12. लाल किताब का असली लेखक है रावण
लाल किताब का असली लेखक रावण को माना जाता था। रावण अपने अहंकार की वजह से अपनी शक्तियों को खो बैठा था और उसने लाल किताब का प्रभाव खो दिया था जो बाद में अरब में पाई गई और इसे उर्दू और पारसी में अनुवाद किया गया था।



13. कई स्थानों पर आज भी होते है रावण की पूजा
दक्षिणी भारत और दक्षिण पूर्वी एशिया के कई हिस्सों में रावण की पूजा की जाती है। कानपुर में कैलाश मन्दिर में साल में एक बार दशहरे के दिन खुलता है, जहां रावण की पूजा होती है। इसके अलावा रावण को आंध्रप्रदेश और राजस्थान के भी कुछ हिस्सों में पूजा जाता है।

रावण अपने अहंकार के कारण अपने ज्ञान और बुद्धि का नाश कर लिया था। वरना वह महान पंडित, ज्ञाता और बलशाली था।

Sunday, May 23, 2021

The Most Iconic 10 Moments From The Ramayan

Ramayan, The Story of The King of Ayodhaya, has been An Integral Part of Indian Mythology. 

And there is just too much to Learn from it. In fact, Every time we Revisit it, we find Something More Intriguing. 

Here are 10 Moments from the Ramayan that we'll never be tired of. 



On Kaikeyi's demand, King Dashrath was forced to send Lord Raam to exile. She wanted her son Bharat to become The Next King of Ayodhya. Raam abandoned his Throne to honor His Father’s Word. He agreed to serve exile in the Forest for 14 Years without complaining or questioning His Father’s Unfair Decision. 




Bharat was heartbroken to see Lord Raam exiled. He decided to visit Lord Raam in the Forest and convinced him to come back and take over as The Next King of Ayodhya. But Raam refused to go back. Instead of taking his elder brother back, Bharat took Raam’s Footwear (Khadaayu - Chappal Made of Wood) and placed it on The Throne of Ayodhya. 




Sawarup Nakha (known as Surpanakha - jis ka Nakh tak Sundar ho), Sister of Raavan, was An Important Character in the Ramayan. Sawarup Nakha met Lord Raam during his exile in the Forest and was completely smitten by his good looks. Raam refused to reciprocate her advances as he wanted to stay faithful to his wife Sita. After being rejected by Lord Raam, she approached Lakshman who had nothing to offer her either. Frustrated Sawarup Nakha then attacked Sita. In order to protect Sita, Lakshman cut off her nose. 




Sawarup Nakha, angry and furious, reached Lanka and informed Raavan about her nose being cut. Raavan then decided to take revenge. He changed his appearance and disguised himself as a Saint. He then went to Sita asking her for food. She tried her best not to cross the Lakshman Rekha, but ultimately gave up. The moment she crossed the line, Raavan returned to his original appearance and kidnapped her. 




When Raam was searching for Sita in the Forests, he happened to visit Sabari’s House. She was An Old Hunter Woman of The Lower Caste and a devotee of Lord Raam. She offered him fruits after biting each piece to ensure that they didn't taste sour. This incident from the Ramayana is relevant even today. It suggests that divine love is above all barriers of caste and creed. And that's something we should all take note of.




In the battle against Raavan, Lakshman was severely wounded. To save him, Hanuman was instructed to get Sanjivani (A Life Saving Herb) from Dronagiri Mountains in the Himalayas. On reaching there, Hanuman got confused and failed to recognize the Necessary Herb. As a result, he lifted The Entire Mountain and brought it to the Battlefield in Lanka. Despite Raavan’s several efforts to distract Hanuman, he managed to succeed. 




On the final day of the War, Raam found out that Raavan had a Vessel of Amrit (The Nectar of Immortality) in his Naabhi (Center Point of Stomach), but he never consumed it. On Rishi Agastya’s Advise, Raam shot An Arrow into Raavan’s Stomach. As a result, The Amrit evaporated resulting in Raavan’s Death.




The End of War with Raavan also marked The End of Lord Raam’s exile in the Forest. He then returned to Ayodhya with Sita and Lakshman and took over as The King. In Hinduism, Lord Raam is referred to as Maryada Purushottam (The Perfect Man or Lord of Virtue). The return of Lord Raam to Ayodhya is celebrated as Diwali, A Festival that celebrates The Victory of Good over Evil. 




Sita was finally rescued by Raam after the War. He made her undergo The Test of Fire to prove her chastity. Some versions of the Ramayan say that when Sita walked over the Flames, they didn’t burn her. Instead, they turned into Flowers. 




Lord Raam performed the Ashwamedha Yagya in which A Horse is Sacrificed. This Particular Horse was captured by Luv and Kush who were unaware that it belonged to their father. They engaged in conflict and defeated Raam’s Brothers. Later, Lord Raam himself turned up for the War. Finally, Hanuman and Valmiki were forced to intervene and informed Lord Raam about The Truth about his Sons. 

Thursday, April 8, 2021

Happy Diwali...........












 

धार्मिक लोग तथा राक्षसों को परशुराम नहीं सुधार पाए इसलिए राम अवतरित हुए

 



इस प्रश्न का संतोषजनक उत्तर तो समाज को चाहीये कि एक के बाद दोसरे अवतार को क्यूँ अवतरित होना पड़ा| लकिन सबसे पहले यह समझ लें कि अवतार आते क्यूँ हैं? जब ज़ुल्म और अत्याचार हद से ज्यादा हो जाय, और समाज विज्ञानिक दृष्टिकोण से भी विकसित हो तो मनुष्य रूप मैं अवतार अपना पूरा जीवन समाज कि दिशा परिवर्तन मैं लगा देते हैं , जिसके उद्धारण, परशुराम, राम और कृष्ण हैं|



श्री कृष्ण के समय मैं जुल्म कितना हो रहा होगा, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं, कि अभी हाल के १००० साल की गुलामी मैं जब हमलावर लूट मार मचा रहे थे, जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कर रहे थे, औरतो को सड़क पर बेईज्ज़त कर रहे थे, मासूम बच्चो को मार रहे थे, तब इश्वर अवतरित नहीं हुए | और इश्वर तो निष्पक्ष हैं , तो फिर आप सोचीये कितना ज़ुल्म त्रेतायुग मैं हो रहा होगा कि एक के बाद दुसरे अवतार को आना पड़ा ! 




समस्या यह भी है कि आज के समाज को गुलाम बना कर रखना संस्कृत विद्वानों और हिन्दू धर्म गुरुजनों का उद्देश है, तो इसलिए सही सूचना समाज को किसी हाल मैं नहीं देंगे | यहाँ तक झूट बोला जा रहा है कि त्रेतायुग के सत्यवान और आदर्श समाज पर विशेष कृपा करने के लिए इश्वर बार बार अवतरित हुए, जो कि पूरी तरह से गलत है, निराधार है, इतिहास तक के विरुद्ध है | जिस समय और युग की बात हो रही है, उस समय कितना ज़ुल्म था यह सोचा भी नहीं जा सकता , लकिन कुछ अंदाज़ आप लगा सकते हैं:-

1. गौतम ऋषि ने अपनी पत्नी अहेलिया को बिना कारण, मात्र शक के कारण मार डाला, और कोडित ग्रंथो मैं यह छपा है कि श्राप से पत्थर बना दिया| इन समाज विरोधी संस्कृत विद्वानों को कोइ यह समझाए कि इतिहास मैं किसी के पास अलोकिक शक्ति नहीं होती |

2. गौतम ऋषि की पुत्री अनजनी के वानर राजा केसरी से सम्न्बंध हो गए, विवाह हुआ कि नहीं , इतिहास इस पर प्रकाश नहीं डाल रहा, और गौतम ऋषि ने अनजनी को पर्वतो मैं रहने के लिए भेज दिया, जहाँ से शिशु हनुमान को वायु मार्ग से केसरी के पास जाना पड़ा , और उनको हमलोग पवनपुत्र कहने लगे| यही कारण था कि हनुमान केसरी राजा कि संतान हो कर भी राज्य के उत्तराधिकारी नहीं बन पाए, सदा खामोश रहते थे, बाल ब्रह्मचारी बन गए |

3. परशुराम के पिता ने तो हद कर दी |वे धार्मिक गुरु थे, उन्होंने अपने पुत्रो को आदेश दे डाला कि वे अपनी माता रेणुका को मार दें | पंडित और महाऋषि पिता जमदग्नि के स्वम के जन्म में कुछ हेरफेर हुई थी, जिसकी गहराई मैं ना जाए तो अच्छा है |

4. कुछ कथा बताती है कि सीता राजा जनक को, एक शाही परंपरागत हल चलाते समय, खेत मैं मिली; कन्याओं कि क्या दुर्दशा थी यह इसका प्रमाण है | कहानी किस्से छोड़ दीजिये, जो सत्य है उसको स्वीकार करीये; कन्या को जन्म के बाद फेक दिया गया ! इतिहास यह भी बताता है कि माता सीता ने गौतम ऋषि से, जो कि महाराज जनक के राज पुरोहित थे, उनसे शिक्षा लेने से इनकार कर दिया था, क्यूंकि उन्होंने अपनी पत्नी अहेलिया को मार डाला था |

5. रावण से युद्ध मैं विजय उपरान्त श्री राम को सीता की अग्नि परीक्षा सबके सामने लेनी पडी क्यूँकी अग्नि परीक्षा को उस समय धार्मिक मान्यता प्राप्त थी, और अगवा स्त्री को समाज मैं वापस जाने के लिए और कोइ धार्मिक विकल्प नहीं था | श्री राम, माता सीता को अयोध्या की महारानी बनाना चाहते थे , तो, आप ही बताएं उनके पास क्या विकल्प था? यह बात इसलिए भी विशेष महत्त्व रखती है क्यूंकि अयोध्या का ब्राह्मण समाज उस समय श्री राम और राज्य परिवार के विरुद्ध था , जिसका प्रमाण है | इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि विजय उपरान्त अयोध्या पहुचने पर राम के राजतिलक के लिए अयोध्या के ब्राह्मणों ने मना कर दिया तब बनारस से ब्राह्मण बुलाने पड़े थे, तथा सीता के विरुद्ध अयोध्या मैं उल्टी सीधी बाते भी ब्राह्मणों ने करी, अन्य जातियों को भी उकसाया, जिसके पश्च्यात सीता का त्याग हुआ | और तभी से बनारस के ब्राह्मण सरयू पारी ब्राह्मण कहलाने लगे; इतनी बात तो आप आज भी पूर्वी उत्तर प्रदेश मैं किसी भी बुजुर्ग ब्राह्मण से मालूम कर सकते हैं |

6. अयोध्या का धार्मिक समाज जनता को सीता के विरुद्ध उकसाता रहा, और अंत मैं श्री राम को एक निष्पक्ष न्यायपीठ का गठन करना पड़ा, जिसमें सीता अपना बचाव नहीं कर पाई | सीता अग्नि परीक्षा के अतिरिक्त कोइ प्रमाण अपनी निष्ठां का नहीं दे पाई, और श्री राम और माता सीता तो अग्नि परीक्षा जैसे क्रूर कर्म को अधर्म घोषित करना चाहते थे, तो राजा राम ने अग्नि परीक्षा को अधर्म घोषित कर दिया और श्री राम को सीता को त्यागना पड़ा !




उपरोक्त से यह स्पष्ट है कि स्त्री जाति के विरुद्ध धर्म ने ऐसा जाल बुन रखा था, कि स्त्री को मारा जा सकता था, शोषण तो होही सकता था, और उसके पास कोइ विकल्प भी नहीं था| दूसरी और मानव की नई प्रजाति जो वन मैं पनप रही थी , वानर, उसको मानव समाज ने मानव तक मानने से इनकार कर रखा था | इन सबपर विस्तृत जानकारी के लिए 

तो परशुराम क्षत्रियों को सुधारने मैं तो पूरी तरह से सफल हुए, लकिन धार्मिक समाज और ब्राह्मण समाज को सुधार नहीं पाए | धार्मिक समाज और ब्राह्मण समाज पूरी तरह से धर्म का दुरूपयोग स्वंम की स्वार्थ सिद्धि के लिए कर रहा था | परशुराम को ब्राह्मणों पर कितना अविश्वास हो गया था, वोह इस बात से साफ़ होता है कि शिव धनुष (WEAPON OF MASS DESTRUCTION) को उन्होंने एक क्षत्रिय राजा जनक के पास रखवाया, न कि किसी ब्राह्मण राजा के पास | 
उधर राक्षस भी आंतक मचाए हुए थे, और उनका नेत्रित्व भी एक ब्राह्मण राजा, रावण, कर रहा था | चुकी ब्राह्मणों ने क्षत्रियों के विरुद्ध परशुराम की सहायता करी थी, इसलिए, तत्पश्च्यात श्री विष्णु को श्री राम के रूप मैं अवतरित होना पड़ा, और इस बार एक क्षत्रिय के भेष मैं !
स्पष्ट है श्री विष्णु, परशुराम के अवतार मैं अनेक महत्वपूर्ण दिशा परिवर्तन कर पाए, लकिन ब्राह्मण समाज और राक्षसों को नहीं सुधार पाए, जिसके लिए श्री राम को अवतरित होना पड़ा |